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लेखनी कहानी -23-Oct-2022 रूप या नरक चतुर्दशी

बड़ा घमासान युद्ध चल रहा था । एक तरफ समस्त नारियां अपने अपने अस्त्र शस्त्र जैसे सुर्खी, काजल, बिंदी, चूड़ी, पायल , गजरा वगैरह सजाकर मैदान में खम ठोंक रही थीं तो दूसरी तरफ एक हाथ में ढाल और दूसरे में "शास्त्र" लेकर पुरुष डटकर उनका मुकाबला कर रहे थे । दोनों में गजब का जोश था । ना ये कम ना वो ज्यादा । घमासान का कारण बड़ा अजीब था । स्त्रियों की टोली कह रही थी कि आज रूप चतुर्दशी है वहीं पुरुषों की टीम अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए कह रही थी कि आज "नरक चतुर्दशी" है । दोनों अपने अपने पक्ष में दुनिया भर की तकरीरें कर रहे थे । उल्टे सीधे सब तरह के तर्क गढ रहे थे ।

महिलाओं का कथन है कि दुनिया में सौन्दर्य का राज्य है । सौन्दर्य ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है । सौन्दर्य से ऊपर कुछ नहीं है । जब भी किसी ऋषि मुनि की तपस्या भंग करने की आवश्यकता हुई तब "सौन्दर्य" रूपी शस्त्र को ही आजमाया गया और यह शस्त्र हर बार अपने उद्देश्य में सफल रहा है । चाहे विश्वामित्र हों या नारद मुनि, सब सौन्दर्य शस्त्र से पराजित हुये हैं । और तो और जब कोई अस्त्र-शस्त्र काम नहीं आया , कूटनीतिक प्रयास भी सफल नहीं हुए तब स्वयं विष्णु भगवान ने दो बार "मोहिनी" रूप धारण कर सौन्दर्य की महत्ता को रेखांकित कर दिया । इसलिए आज का दिन "सौन्दर्य" का दिन है और इस दिन को "रूप चतुर्दशी" ही कहा जाना चाहिए । 
पुरुषों के कुछ पुरोधा जो खुद को शास्त्रों का श्रेष्ठ जानकार , वेदों का प्रकाण्ड पंडित और न जाने खुद को क्या क्या मानते थे , कहने लगे 
"ये रूप ही तो है जो मनुष्य को 'मायाजाल' में फंसाता है । सौन्दर्य के भंवर में फंसा व्यक्ति अवश्य ही डूबकर रहता है । जैसे ही कालिदास को बोध हुआ वह सौन्दर्य रूपी भंवर से बाहर निकल आये और एक महान कवि, लेखक, साहित्यकार बन गये । महाकवि तुलसीदास जी को ही देख लो । सबसे महान ग्रंथ "रामचरितमानस" की रचना तब ही हुई जब उन्होंने 'रूप की दुनिया' से नाता तोड़कर 'भक्ति' से नाता जोड़ लिया था । रूप के जाल में फंसकर देवराज इंद्र 'लंपट' कहलाये । रूप की आग में रावण जलकर भस्म हो गया । दुर्योधन की सद्गति नहीं हुई । और भी बहुत से उदाहरण हैं । राजा दशरथ और राजा शान्तनु के किस्से सब जानते हैं । इसलिए रूप का महल 'नर्कगामी' है और यही याद दिलाने की खातिर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है कि "रूप की नदी" से दूर,रहो । यह दिखती नदी है पर हकीकत में यह एक दलदल है । नर्क चतुर्दशी का उल्लेख इसलिए करना चाहिए जिससे मानव मन "रूप के सागर" में कहीं डुबकी ना लगा बैठे" ? 

बात तो दोनों की सही थी । पर यह सच है कि "हुस्न" के सामने कौन टिका है ? हुस्न का महल इतना हसीं है कि हर कोई उसमें ही रहना चाहता है । युद्ध बहुत रोचक रहा मगर विजय अंतत : हुस्न की ही हुई और यह निर्णय हुआ कि आज का दिन "रूप चतुर्दशी" के नाम से ही जाना जायेगा । 
इति श्री रूप चतुर्दशी कथा महात्म्य समाप्त 
सब प्रेम से बोलिए 
"रूप की रानी की" 
"जय हो, जय हो" 

श्री हरि 
23.10.22 

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4 Comments

Pratikhya Priyadarshini

27-Oct-2022 10:14 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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Khan

25-Oct-2022 07:14 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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Mahendra Bhatt

23-Oct-2022 04:16 PM

बहुत खूब

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